अभी तक ऐसी मान्यता रही है कि हृदय रोग, मधुमेह, गठिया, मोटापा, कैंसर जैसे भयानक रोग सम्पन्न और सुविधाजनक जीवन गुजार रहे लोगों के रोग हैं। अतः पश्चिमी विकसित और उद्योगों वाले राष्ट्रों की तुलना में भारत जैसे अति गरीब, सुविधाहीन और शाकाहार पर जीवन गुजारने वाले लोगों में इन रोगों के फैलने की संभावना बहुत कम होनी चाहिये थी किन्तु दुर्भाग्य से यह सिद्धान्त बिलकुल विपरीत पड़ने लगा है।
भारत के विभिन्न हिस्सों में विगत कुछ दशकों
में किये गये अनेक अध्ययनों ने स्वास्थ्य संबंधी योजनायें बनाने वाले विशेषज्ञों
की नींद को उड़ा कर रख दिया है। इन अध्ययनों से पता चला है कि हृदय रोगों के मामले
हमारे देश में बड़ी तेजी से बढ़ रहे हैं। विशेषकर हमारे देश की शहरी आबादी में तो
हृदय रोगियों की संख्या द्रुतगति से बढ़ रही है। अनुमान है कि इस समय हमारे देश
में 10 से 11 करोड़ के लगभग लोग हृदय रोगों से पीड़ित हैं
यानी कि हमारे देश की लगभग 10 प्रतिशत आबादी हृदय रोग से पीड़ित है ।
प्रतिवर्ष 40 से 50 लाख लोगों को गंभीर प्रकार की हृदय
संबंधी समस्याओं से गुजरना पड़ता है। इनमें से आधे से ज्यादा हृदय रोगी तो ऐसे
होते हैं, जो या तो मृत्यु का शिकार बन जाते हैं या फिर हिदायत भरी दवाओं और
चिकित्सकों के सहारे अपंगता भरी जिन्दगी जीने पर विवश हो जाते हैं। भारत में हृदय
रोगों के कारण होने वाली मौतों की संख्या दुनिया भर में इस रोग से होने वाली मौतों
की कुल संख्या का 18 प्रतिशत के लगभग बैठता है।
यहां खेद की बात तो यह है कि पश्चिम में जहां हृदय रोगों से मरने वाल लोगों की औसतन उम्र 70 साल से अधिक रहती है, वहां भारत में 52 प्रतिशत से अधिक हृदय रोगियों की मौत औसतन कम उम्र में ही हो जाती है। यहां एक और विशेष बात ध्यान देने योग्य है कि इन हृदय रोगियों में साधारण उच्च रक्तचाप से पीड़ित रोगियों की संख्या सम्मिलित नहीं है, क्योंकि अधिकांश मामलों में उच्च रक्तचाप का हृदय से सीधा संबंध नहीं माना जाता है, परन्तु जीर्ण अवस्था का अनियंत्रित उच्च रक्तचाप हृदय पर सीधा कुंप्रभाव डालता है। अनुमान है कि उच्च रक्तचाप से पीड़ित 6 करोड़ से भी ज्यादा रोगी भारत में हैं।